होली के लिए अभी तक ये दो कार्य नहीं किया हो तो शीघ्र करें

23 फरवरी 2021

 
होली का नाम आते ही दो बातें तुरंत ध्यान में आती हैं… एक तो रात में होलिका दहन करना और दूसरा धुलेंडी खेलना ..।
 
इसके पीछे बड़ा वैज्ञानिक महत्व छुपा है, हमारे ऋषि-मुनियों ने ऐसे ही कोई त्यौहार नहीं बनाया है।
 

 

 
होली राष्ट्रीय, सामाजिक और आध्यात्मिक पर्व है पर कुछ नासमझ लोग इस पवित्र त्यौहार को विकृत करने में लगे हैं और होलिका दहन लकड़ियों से करने लगे जिससे वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ने लगा दूसरा कि धुलेंडी खेलते समय केमिकल रंगों का उपयोग करने लगे जिसके कारण होली में स्वास्थ्य लाभ होने की बजाय बीमारियां होने लगी।
 
होली पर पर्यावरण को शुद्ध करने एवं आपका स्वास्थ्य बढ़िया रहे इसलिए हम आपको दो अच्छे उपाय बता रहे है उसके लिए अभी आप तैयारी करें।
 
1. देशी गाय के गोबर के कंडों से होलिका दहन
 
एक गाय करीब रोज 10 किलो गोबर देती है । 10.. किलो गोबर को सुखाकर 5 कंडे बनाए जा सकते हैं ।
 
एक कंडे की कीमत करीब 10 रुपए रख सकते हैं । इसमें 2 रुपए कंडे बनाने वाले को, 2 रुपए ट्रांसपोर्टर को और 6 रुपए गौशाला को मिल सकते है । यदि किसी एक शहर में होली पर 10 लाख कंडे भी जलाए जाते हैं तो 1 करोड़ रुपए कमाए जा सकते हैं । औसतन एक गौशाला के हिस्से में बगैर किसी अनुदान के करीब 60 लाख रुपए तक आ जाएंगे । लकड़ी की तुलना में हमें कंडे सस्ते भी पड़ेंगे ।
 
केवल 2 किलो सूखा गोबर जलाने से 60 फीसदी यानी 300 ग्राम ऑक्सीजन निकलती है । वैज्ञानिकों ने शोध किया है कि गाय के एक कंडे में गाय का घी डालकर धुंआ करते हैं तो एक टन ऑक्सीजन बनता है ।
 
गाय के गोबर के कण्डों से होली जलाने पर गौशालाओं को स्वाबलंबी बनाया जा सकता है, जिससे गौहत्या कम हो सकती है, कंडे बनाने वाले गरीबों को रोजी-रोटी मिलेगी, और वातावरण में शुद्धि होने से हर व्यक्ति स्वस्थ रहेगा ।
 
दूसरा कि वृक्षों को काटना नही पड़ेगा जिससे वातावरण में संतुलन बना रहेगा।
 
वातावरण अशुद्ध होने पर कोरोना जैसे भयंकर वायरस आ जाते हैं, अगर देशी गाय के गोबर के कंडे से होली जलाई जाए तो कोरोना जैसे एक भी वायरस वातावरण में नही रहेगा और हमारा स्वास्थ्य उत्तम हो जायेगा जिससे देश के करोड़ो रूपये बच जाएंगे।
 
2. पलाश के रंग से खेलें होली
 
पलाश को हिंदी में ढाक, टेसू, बंगाली में पलाश, मराठी में पळस, गुजराती में केसूड़ा कहते हैं ।
 
केमिकल रंगों से होली खेलने से उसके पैसे चीन देश में जायेंगे और बीमारियां भी होंगी लेकिन पलाश के फूलों से होली खेलने से कफ, पित्त, कुष्ठ, दाह, वायु तथा रक्तदोष का नाश होता है। साथ ही रक्तसंचार में वृद्धि करता है एवं मांसपेशियों का स्वास्थ्य, मानसिक शक्ति व संकल्पशक्ति को बढ़ाता है ।
 
रासायनिक रंगों से होली खेलने में प्रति व्यक्ति लगभग 35 से 300 लीटर पानी खर्च होता है, जबकि सामूहिक प्राकृतिक-वैदिक होली में प्रति व्यक्ति लगभग 30 से 60 मि.ली. से कम पानी लगता है ।
 
इस प्रकार देश की जल-सम्पदा की हजारों गुना बचत होती है । पलाश के फूलों का रंग बनाने के लिए उन्हें इकट्ठे करनेवाले आदिवासियों को रोजी-रोटी मिल जाती है ।पलाश के फूलों से बने रंगों से होली खेलने से शरीर में गर्मी सहन करने की क्षमता बढ़ती है, मानसिक संतुलन बना रहता है ।
 
इतना ही नहीं, पलाश के फूलों का रंग रक्त-संचार में वृद्धि करता है, मांसपेशियों को स्वस्थ रखने के साथ-साथ मानसिक शक्ति व इच्छाशक्ति को बढ़ाता है । शरीर की सप्तधातुओं एवं सप्तरंगों का संतुलन करता है ।  (स्त्रोत : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित ऋषि प्रसाद पत्रिका)
 
आपने देशी गाय के गोबर के कंडों से होलिका दहन और पलाश के रंगों से होली खेलने का फायदे देखें। अब आप गाय के गोबर के कंडे के लिए नजदीकी गौशाला में संपर्क करें एवं पलाश के फूलों के लिए नजदीकी में कोई आदिवासी भाई हो उनसे संपर्क जरूर करें।
 
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