मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश वाली याचिका खारिज, सबरीमाला में प्रवेश क्यों?

10 जुलाई 2019
🚩भारत में गिने-चुने 2-4 मंदिर ऐसे होंगे जिसमें महिलाओं का प्रवेश निषेध होगा क्योंकि मंदिर की ऐसी प्रथा प्राचीनकाल से चली आ रही है, उस पर तथाकथित बुद्धजीवियों को आपत्ति होती है, सेकुलर हिंदू व नेता हो हल्ला मचाने लगते हैं और मीडिया का तो बोलना ही क्या वो तो 24 घण्टे गले फाड़-फाड़कर चिल्लाने लगती है कि महिलाओं को भी मंदिर में प्रवेश मिलना चाहिए, समान अधिकार होना चाहिए, लेकिन जैसे ही पूरे देश में मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश की बात आती है तब सब चुप हो जाते हैं । यहाँ तक कि सुप्रीम कोर्ट या सरकार भी उसमे हस्तक्षेप नहीं करती है और ना ही मीडिया और तथाकथित बुद्धिजीवी तथा सेक्युलरों को तो मानो साँप सूंघ जाता है । क्या मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की चिंता इस दोगली मीडिया को नहीं है ?

🚩आपको बता दें कि उच्चतम न्यायालय ने मस्जिदों में नमाज के लिये महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने के लिये अखिल भारत हिन्दू महासभा की केरल इकाई की याचिका सोमवार को खारिज कर दी ।
🚩प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने केरल उच्च न्यायालय के इस आदेश को सहीं ठहराया कि यह जनहित याचिका प्रायोजित है और ‘सस्ते प्रचार के लिये इसका इस्तेमाल हो रहा है।
🚩केरल उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील खारिज करते हुये पीठ ने सवाल किया, ”आप कौन हैं? आप कैसे प्रभावित हैं? हमारे सामने प्रभावित लोगों को आने दीजिये।
🚩अखिल भारत हिन्दू महासभा की केरल इकाई के अध्यक्ष स्वामी देतात्रेय साई स्वरूप नाथ ने जब न्यायाधीशों के सवालों का जवाब मलयाली भाषा में देने का प्रयास किया तो पीठ ने न्यायालय कक्ष में उपस्थित एक अधिवक्ता से इसका अनुवाद करने का अनुरोध किया।
🚩अधिवक्ता ने पीठ के लिये अनुवाद करते हुये कहा कि स्वामी याचिकाकर्ता हैं और उन्होंने केरल उच्च न्यायालय के 11 अक्टूबर 2018 के आदेश को चुनौती दी है।
🚩इस पर पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में इस तथ्य का उल्लेख किया है कि इस याचिका पर सुनवाई होने से पहले ही इसके बारे में मीडिया में खबरें थीं और यह प्रायोजित याचिका लगती है जिसका मकसद सस्ता प्रचार पाना है।
🚩पीठ ने कहा, ”हमें उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने की कोई वजह नजर नहीं आती है। याचिका खारिज की जाती है।
🚩पर यही सुप्रीम कोर्ट सबरीमाला पर ये बातें याचिकाकर्ता से नहीं पूछती है सीधा प्रवेश का आदेश दे देती है, जबकि हजारों महिलाओं ने इसका विरोध किया फिर भी उनकी एक भी नहीं सुनी । जलीकट्टू पर भी रोक लगाने की और दही-हांडी पर रोक लगाने पर आदेश दे दिया तब याचिकाकर्ता को नहीं पूछा कि आप कौन हो? प्रभावित लोगों को आने दो ।
🚩भारतीय संविधान के अनुसार भारत धर्मनिरपेक्ष देश है और संविधान हर नागरिक को समान मौलिक अधिकार भी देता है । पर वास्तव में ये सब कागज़ों तक ही सीमित है । बाकी हिंदुओं का कोई अधिकार दिखता ही नहीं है, दुनिया के किसी भी कोने में हिंदू चले जाएँ वहाँ प्रताड़ित ही होंगे ।
🚩महिलाओं का मस्जिद में प्रवेश धार्मिक मामले के अंतर्गत आता है, लेकिन हिन्दू धर्म की प्रथा, नियम, मान्यताओं पर न्यायालय द्वारा चोट किया जाता है । क्या हिंदुओं का अपना कोई धार्मिक अधिकार, स्वतंत्रता नहीं है ? आज ऐसे ही फैसलों के कारण जनता का विश्वास न्यायतंत्र से उठता जा रहा है ।
🚩हिंदुओं के साथ सदा भेदभाव होता आया है । एक तरफ तो भारत देश का संविधान बोलता है कि भारत धर्मनिरपेक्ष देश है तो क्यों केवल हिंदुओं की भावना और छवि से ही खिलवाड़ क्यों किया जाता है ? विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहे जाने वाले देश भारत में केवल हिंदुओं के साथ ही अन्याय क्यों होता है ? क्या यही लोकतंत्र है कि एक धर्म विशेष का निम्नीकरण होता रहे और बाकी धर्मों को विशेष लाभ एवं विशेष दर्जा मिलता रहे ? और निम्नीकरण भी कानूनी रूप से करना तो बहुत बड़ा अत्याचार है ।
🚩इसमें सबसे ज्यादा गलती हिंदुओं की है जो आपस मे एकता नहीं है, एक दूसरे को सहयोग नहीं करते है, अपने ही धर्मगुरुओं और हिंदू परम्पराओं की खिल्ली उड़ाते है, धर्म की रक्षा के लिए समय नहीं देते हैं, जात-पात में बंटे हैं, अगर हिंदू इसपर ध्यान दें तो हिंदुओं के पक्ष में सरकार, कानून और मीडिया आ जायेंगे, तथाकथित बुद्धजीवी हिंदुओं के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करेंगे।
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