बैसाखी के अवसर पर हिन्दू समाज के लिए खास संदेश…

15 अप्रैल 2021

azaadbharat.org

मुगल शासनकाल के दौरान बादशाह औरंगज़ेब का आतंक बढ़ता ही जा रहा था। चारों ओर औरंगज़ेब की दमनकारी नीति के कारण हिन्दू जनता त्रस्त थी। सदियों से मुस्लिम आक्रांताओं के झुंड पर झुंड का सामना करते हुए हिंदू समाज अपना आत्मविश्वास खो बैठा था। मगर अत्याचारी थमने का नाम भी नहीं ले रहे थे। जनता पर हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए सिख पंथ के गुरु गोविन्द सिंह ने बैसाखी पर्व पर आनन्दपुर साहिब के विशाल मैदान में अपनी संगत को आमंत्रित किया। जहां गुरुजी के लिए एक तख्त बिछाया गया और तख्त के पीछे एक तम्बू लगाया गया। गुरु गोविन्द सिंह के दायें हाथ में नंगी तलवार चमक रही थी। गोविन्द सिंह नंगी तलवार लिए मंच पर पहुंचे और उन्होंने ऐलान किया- मुझे एक आदमी का सिर चाहिए। क्या आप में से कोई अपना सिर दे सकता है? यह सुनते ही वहां मौजूद सभी शिष्य आश्चर्यचकित रह गए और सन्नाटा छा गया। उसी समय दयाराम नामक एक खत्री आगे आये जो लाहौर निवासी थे और बोले- आप मेरा सिर ले सकते हैं। गुरुदेव उसे पास ही बनाए गए तम्बू में ले गए। कुछ देर बाद तम्बू से खून की धारा निकलती दिखाई दी। तंबू से निकलते खून को देखकर पंडाल में सन्नाटा छा गया। गुरु गोविन्द सिंह तंबू से बाहर आए, नंगी तलवार से ताजा खून टपक रहा था। उन्होंने फिर ऐलान किया- मुझे एक और सिर चाहिए। मेरी तलवार अभी भी प्यासी है। इस बार धर्मदास नामक जाट आगे आये जो सहारनपुर के जटवाडा गांव के निवासी थे। गुरुदेव उन्हें भी तम्बू में ले गए और पहले की तरह इस बार भी थोड़ी देर में खून की धारा बाहर निकलने लगी। बाहर आकर गोविन्द सिंह ने अपनी तलवार की प्यास बुझाने के लिए एक और व्यक्ति के सिर की मांग की। इस बार जगन्नाथ पुरी के हिम्मत राय झींवर (पानी भरने वाले) खड़े हुए। गुरुजी उन्हें भी तम्बू में ले गए और फिर से तम्बू से खून की धारा बाहर आने लगी। गुरुदेव पुनः बाहर आए और एक और सिर की मांग की, तब द्वारका के युवक मोहकम चन्द दर्जी आगे आए। इसी तरह पांचवी बार फिर गुरुदेव द्वारा सिर मांगने पर बीदर निवासी साहिब चन्द नाई सिर देने के लिए आगे आये। मैदान में इतने लोगों के होने के बाद भी वहां सन्नाटा पसर गया, सभी एक-दूसरे का मुंह देख रहे थे। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। तभी तम्बू से गुरु गोविन्द सिंह केसरिया बाना पहने पांचों नौजवानों के साथ बाहर आए। पांचों नौजवान वही थे जिनके सिर काटने के लिए गुरु गोविन्द सिंह तम्बू में ले गए थे। गुरुदेव और पांचों नौजवान मंच पर आए, गुरुदेव तख्त पर बैठ गए। पांचों नौजवानों ने कहा- गुरुदेव हमारे सिर काटने के लिए हमें तम्बू में नहीं ले गए थे, बल्कि वह हमारी परीक्षा थी। तब गुरुदेव ने वहां उपस्थित सिक्खों से कहा- आज से ये पांचों मेरे पंज प्यारे हैं। गुरु गोविन्द सिंह के महान संकल्प से खालसा की स्थापना हुई। हिन्दू समाज अत्याचार का सामना करने हेतु संगठित हुआ। यह घटना एक मनोवैज्ञानिक प्रयोग था। गुरु साहिबान ने अपनी योग्यता के अनुसार यह प्रयोग कर हिन्दुओं को संगठित करने का प्रयास किया।

पञ्च प्यारों में सभी जातियों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे। इसका अर्थ यही था कि अत्याचार का सामना करने के लिए हिन्दू समाज को जात-पांत मिटाकर संगठित होना होगा। तभी अपने से बलवान शत्रु का सामना किया जा सकेगा। खेद है कि हिन्दुओं ने गुरु गोविन्द सिंह के सन्देश पर अमल नहीं किया। जात-पांत के नाम पर बंटे हुए हिन्दू समाज में संगठन भावना शून्य है। गुरु गोविन्द सिंह ने स्पष्ट सन्देश दिया कि कायरता भूलकर, स्व-बलिदान देना जब तक हम नहीं सीखेंगे, तब तक देश, धर्म और जाति की सेवा नहीं कर सकेंगे। अपने आपको समर्थ बनाना ही एक मात्र विकल्प है। धर्मानुकूल व्यवहार, सदाचारी जीवन,आध्यात्मिकता, वेदादि शास्त्रों का ज्ञान जीवन को सफल बनाने के एकमात्र विकल्प हैं।

1. आज हमारे देश में सेक्युलरवाद के नाम पर, अल्पसंख्यकों के नाम पर तुष्टिकरण का सहारा लेकर अवैध बांग्लादेशियों को बसाया जा रहा है।

2. हज सब्सिडी दी जा रही है, मदरसों को अनुदान और मौलवियों को मासिक खर्च दिया जा रहा है, आगे आरक्षण देने की तैयारी है।

3. वेद, दर्शन, गीता के स्थान पर क़ुरान और बाइबिल को आज के लिए धर्म ग्रन्थ बताया जा रहा है।

4. हमारे अनुसरणीय राम-कृष्ण के स्थान ग़रीब नवाज, मदर टेरेसा को बढ़ावा दिया जा रहा है।

5. ईसाईयों द्वारा हिन्दुओं के धर्मान्तरण को सही और उसका प्रतिरोध करने वालों को कट्टर बताया जा रहा है।

6. गौरी-ग़जनी को महान और शिवाजी और प्रताप को भगोड़ा बताया जाता रहा है।

7.1200 वर्षों के भयानक और निर्मम अत्याचारों की अनदेखी कर बाबरी और गुजरात दंगों को चिल्ला-चिल्ला कर भ्रमित किया जा रहा है।

8. हिन्दुओं के दाह संस्कार को प्रदूषणकारक और जमीन में गाड़ने को सही ठहराया जा रहा है।

9. दीवाली-होली को प्रदूषण करनेवाला और बकरीद को त्योहार बताया जा रहा है।

10. वन्दे मातरम, भारत माता की जय बोलने पर आपत्ति और कश्मीर में भारतीय सेना को बलात्कारी बताया जा रहा है।

11. विश्व इतिहास में किसी भी देश पर हमला कर अत्याचार न करनेवाले हिन्दू समाज को अत्याचारी और समस्त विश्व में इस्लाम के नाम पर लड़कियों को गुलाम बनाकर बेचनेवालों को शांतिप्रिय बताया जा रहा है।

12. संस्कृत भाषा को मृत और उसके स्थान पर उर्दू, अरबी, हिब्रू और जर्मन जैसी भाषाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है।

13. देश, धर्म व संस्कृति के हित में कार्य करनेवाले हिंदूनिष्ठों व साधु-संतों को जेल भेजा जा रहा अथवा उनकी हत्या कर दी जा रही है।

हमारे देश, हमारी आध्यात्मिकता, हमारी आस्था, हमारी श्रेष्ठता, हमारी विरासत, हमारी महानता, हमारे स्वर्णिम इतिहास- सभी को मिटाने के लिए सुनियोजित षड़यंत्र चलाया जा रहा है। गुरु गोविन्द सिंह के पावन सन्देश का पालन करते हुए जातिवाद और कायरता का त्याग कर संगठित होने मात्र से हिन्दू समाज का हित संभव है।

आईये, बैसाखी पर एक बार फिर से देश, धर्म और जाति की रक्षा का संकल्प लें। – डॉ. विवेक आर्य

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