नवरात्रि या उपवास में साबूदाने खाते हैं तो सावधान, जान लीजिए असलियत

नवरात्रि या उपवास में साबूदाने खाते है तो सावधन, जान लीजिए असलियत
01 अक्टूबर 2019
भारतीय जीवनचर्या में व्रत एवं उपवास का विशेष महत्त्व है। उनका अनुपालन धार्मिक दृष्टि से किया जाता है परंतु व्रतोपवास करने से शरीर भी स्वस्थ रहता है। लेकिन उपवास के नाम पर साबूदाना और तला हुआ आलू खाना भयंकर हानि करता है।
आमतौर पर साबूदाना शाकाहार कहा जाता है और व्रत-उपवास में इसका काफी प्रयोग होता है । लेकिन शाकाहार होने के बावजूद भी साबूदाना पवित्र नहीं है । क्या आप इस सच्चाई को जानते हैं ?
यह सच है कि साबूदाना ‘कसावा’ के गूदे से बनाया जाता है परंतु इसकी निर्माण-विधि इतनी अपवित्र है कि इसे शाकाहार एवं स्वास्थ्यप्रद नहीं कहा जा सकता ।
साबूदाना बनाने के लिए सबसे पहले कसावा को खुले मैदान में बनी कुण्डियों में डाला जाता है तथा रसायनों की सहायता से उन्हें लम्बे समय तक सड़ाया जाता है ।
इस प्रकार सड़ने से तैयार हुआ गूदा महीनों तक खुले आसमान के नीचे पड़ा रहता है ।
रात में कुण्डियों को गर्मी देने के लिए उनके आस-पास बड़े-बड़े बल्ब जलाये जाते हैं । इससे बल्ब के आस-पास उड़नेवाले कई छोटे-छोटे जहरीले जीव भी इन कुण्डियों में गिरकर मर जाते हैं ।
दूसरी ओर इस गूदे में पानी डाला जाता है जिससे उसमें सफेद रंग के करोड़ों लम्बे कृमि पैदा हो जाते हैं । इसके बाद इस गूदे को मजदूरों के पैरों-तले रौंदा जाता है । इस प्रक्रिया में गूदे में गिरे हुए कीट-पतंग तथा सफेद कृमि भी उसीमें समा जाते हैं । यह प्रक्रिया कई बार दोहरायी जाती है ।
इसके बाद इसे मशीनों में डाला जाता है और ‘मोती जैसे चमकीले दाने बनाकर साबूदाने का नाम-रूप दिया जाता है परंतु इस चमक के पीछे कितनी अपवित्रता छिपी है वह सभीको दिखायी नहीं देती ।
अब आपने साबूदाने की सच्चाई जान ली है अतः पवित्र व्रत उपवास में इसका उपयोग नही करें ।
अब प्रश्न आता है कि हम व्रत में साबूदाना नही खाये तो क्या खाये..?
व्रत में सबसे उत्तम होता है गौ-माता का दूध ।
फलाहार में जैसे कि सेब, अनार, अंगूर आदि ले सकते हैं।
सिंघाड़े का आटा, खजूर, राजगिरे का शिरा आदि व्रत में खा सकते हैं ।
आयुर्वेद तथा आधुनिक विज्ञान दोनों का एक ही निष्कर्ष है कि व्रत और उपवासों जहाँ अनेक शारीरिक व्याधियाँ समूल नष्ट हो जाती हैं, वहाँ मानसिक व्याधियों के शमन का भी यह एक अमोघ उपाय है। इससे जठराग्नि प्रदीप्त होती है व शरीरशुद्धि होती है।
फलाहार का तात्पर्य उस दिन आहार में सिर्फ कुछ फलों का सेवन करने से है लेकिन आज इसका अर्थ बदलकर फलाहार में से अपभ्रंश होकर फरियाल बन गया है और इस फरियाल में लोग ठूँस-ठूँसकर साबुदाने की खिचड़ी या भोजन से भी अधिक भारी, गरिष्ठ, चिकना, तला-गुला व मिर्च मसाले युक्त आहार का सेवन करने लगे हैं। उनसे अनुरोध है कि वे उपवास न ही करें तो अच्छा है क्योंकि इससे उपवास जैसे पवित्र शब्द की तो बदनामी होती है, साथ ही साथ शरीर को और अधिक नुक्सान पहुँचता है। उनके इस अविवेकपूर्ण कृत्य से लाभ के बदले उन्हें हानि ही हो रही है।
सप्ताह में एक दिन तो व्रत रखना ही चाहिए। इससे आमाशय, यकृत एवं पाचनतंत्र को विश्राम मिलता है तथा उनकी स्वतः ही सफाई हो जाती है। इस प्रक्रिया से पाचनतंत्र मजबूत हो जाता है तथा व्यक्ति की आंतरिक शक्ति के साथ-साथ उसकी आयु भी बढ़ती है।
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