जानिए वैदिक गुरुकुलों की पुनः स्थापना से हमारा और राष्ट्र की कैसे उन्नति होगी?

03 मार्च 2021

 
English Education Act, 1835 के तहत जब से भारत में ‘मैकाले शिक्षा पद्धति’ शुरु हुई है तब से अब तक की शिक्षा पद्धति को ‘आधुनिक शिक्षा पद्धति’ कहते हैं । इस शिक्षा पद्धति को भारत में शुरु करने का एकमात्र कारण यह था कि दुनिया के अन्य सभी हिस्सों में रहनेवाले लोग अंग्रेज साम्राज्य के गुलाम बन गए थे यानि उन्होंने अंग्रेजों की अधिनता आसानी से स्वीकार कर ली थी, परन्तु एक भारत ही था जहाँ उन्हें बहुत मशक्कत करनी पड़ रही थी क्योंकि यहाँ के गुरुकुलों के आचार्य विद्यार्थियों के स्वास्थ्यबल, प्राणबल, चारित्र्यबल एवं विवेचना-शक्ति को इतना प्रबल बना देते थे कि भारत का विद्यार्थी स्वावलंबी बन जाता था, वह अपने आचार्य के सिवाय किसी की आधिनता स्वीकार नहीं करता था । उसका जीवन उसके आचार्य द्वारा दिये गये उच्च आदर्शों एवं चारित्र्य के संस्कारों से ओतप्रोत होता था । तब मैकाले ने भारत में जगह-जगह घूमकर देखा और पाया कि इनकी तो जीवन शैली बहुत ऊँची है और यहाँ के लोग दृढ़ चरित्रबल वाले हैं । इन्हें आसानी से अपना गुलाम बनाना बहुत मुश्किल है । उसने इन सब बातों पर गहन विचार किया तो निष्कर्ष निकाला कि इनकी जो शिक्षा पद्धति है वो उच्च आदर्शों से सम्पन्न है । इसलिए हमें इनकी शिक्षा पद्धति पर ही कुठाराघात करना चाहिए, ताकि ये भी हमारे गुलाम बन सकें । तब सन् 1835 में मैकाले ने एक रिपोर्ट तैयार करके इंग्लेंड की सरकार को भेजी जिसमें उसने कहा –
 

 

 
 
“I have travelled across the length and breadth of India and I have not seen one person who is a beggar, who is a thief such wealth I have seen in this country, such high moral values, people of such caliber, that I do not think we would ever conquer this country unless we break the very backbone of this nation which is her spiritual and cultural heritage and therefore I propose that we replace her old and ancient education system, her culture, for if the Indians think that all that is foreign and English is good and greater than their own, they will lose their self-esteem, their native culture and they will become what we want them, a truly dominated nation.”
 
अर्थात्
“मैं पूरा भारत घूमा, वहाँ पर ना ही मुझे कोई भिखारी दिखा और ना ही मुझे कोई चोर मिला, मुझे किसी भी तरह से ना ही कोई धन की कमी दिखाई दी । वहाँ पर लोगों की मोरल वैल्यूज बहुत ऊँची हैं, लोग बहुत इंटेलीजेंट हैं व उनका कैलिबर इतना ज्यादा है कि हम उन्हें नहीं जीत सकते; जब तक कि हम उनकी रीढ़ की हड्डी, उनके एजुकेशन सिस्टम को न तोड़ दें यानि उनकी आध्यात्मिक व सांस्कृतिक विरासत को खत्म न कर दें, भारत को जीतना मुश्किल ही नहीं असंभव है । इसलिए मेरा (लार्ड मैकाले) प्रस्ताव है कि उनके पुराने एजुकेशन सिस्टम व उनकी सांस्कृतिक विरासत को पहले खत्म किया जाए और उन्हें भरोसा दिलाया जाए कि ये सिस्टम सही नहीं है । उन्हें भरोसा दिलाया जाए कि इंग्लिश अच्छी है और उनके पुराने एजुकेशन सिस्टम से बेहतर है ताकि उनका स्वाभिमान (आत्म-सम्मान) खत्म हो जाये और वे अपनी मूल संस्कृति से भटक जाएँ । तभी जो हम चाहते हैं वो हो सकता है, यानि तभी हम उन पर हावी हो सकते हैं; अन्यथा नहीं ।”
तब English Education Act, 1835 के तहत कोंवेंट स्कूलों एवं कॉलेजों को खोला गया और उनका खूब प्रचार-प्रसार किया गया ताकि ‘भारत के लोग शरीर से तो भारतीय रहें परंतु सोच-विचार से अंग्रेजों के गुलाम हो जाएँ यानि अंग्रेजों को ही अपना आदर्श मानकर उनका अनुसरण करें’ । तो यह अंग्रेजों की आधुनिक शिक्षा पद्धति की ही देन है जो आजकल के युवा भारतीय संस्कृति के उच्च आदर्शों को भूलकर अंग्रेजों का ही अनुकरण कर रहे हैं, अपने माता-पिता व गुरुजनों का अनादर कर रहे हैं, लिव इन रिलेशन, गे-सेक्स आदि कुरीतियों को अपना रहे हैं, ज्योइन्ट फैमिली (संयुक्त परिवार) न्यूक्लियर फैमिली (एकाकी परिवार) में परिणत हो रहे हैं, हृदय की जो व्यापकता होनी चाहिए जिस पर एक आदर्श समाज टिका है, उस व्यापकता के स्थान पर लोगों के मन-बुद्धि में संकीर्णता बढ़ रही है, यानि मानव जाति कुल मिलाकर पशुता की ओर अग्रसर हो रही है जिससे जीवन में तनाव, खिंचाव, आपसी वैर-वैमनस्य, कलह, अशांति, बिमारियाँ दिन पर दिन बढ़ रहे हैं ।
आधुनिक शिक्षा पद्धति में अक्षर-ज्ञान तो दिया जाता है परन्तु वो व्यक्ति को एक संपूर्ण मानव बनाने की जिम्मेदारी नहीं लेती । वो उसे एक चलती-फिरती मशीन जरुर बना देगी या फिर अक्षरस्थ एक पशु जरुर तैयार हो जायेगा, परन्तु एक आदर्श मनुष्य की कल्पना आधुनिक शिक्षा पद्धति नहीं कर सकती ।
 
आधुनिक शिक्षा पद्धति व्यक्ति को परावलंबी बना देती है । ऐसा व्यक्ति अपने जीवन की निजी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी पूरा जीवन मल्टीनेशनल कंपनियों का नौकर बना रहता है और बाद में कंपनीवाले उसे कहीं जॉब से निकाल न दें, कहीं कंपनी बंद न हो जाए आदि-आदि चिंताएँ उसके मन में बनी रहती है यानि कुल मिलाकर वह व्यक्ति एक स्वावलंबी जीवन व्यतीत कभी नहीं कर सकेगा ।
 
आधुनिक शिक्षा पद्धति व्यक्ति के चरित्र निर्माण पर जोर नहीं देती तो क्या वह एक उच्च आदर्शवादी समाज का निर्माण कर पायेगी ? मित्रों ! भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जिसमें परिवार व्यवस्था देखी जाती है । बाकी विदेशों में परिवार व्यवस्था की कोई अहमियत नहीं है, क्यों ? क्योंकि एक उत्तम परिवार निर्माण के लिए जीवन में संयम, सदाचार, चरित्र बल, नैतिक बल आदि उन्नत आदर्शों की आवश्यकता होती है और कई उन्नत परिवार मिलकर ही एक उन्नत समाज की रचना करते हैं और कई उन्नत समाज मिलकर एक उन्नत राष्ट्र की परिकल्पना कर सकते हैं जो आधुनिक शिक्षा पद्धति से कदापि संभव नहीं है ।
आधुनिक शिक्षा पद्धति में पढ़ा हुआ विद्यार्थी अपने माता-पिता और गुरुजनों का आदर नहीं करता, वह उन्हें तुच्छ और अपने आपको बुद्धिमान समझता है । आधुनिक शिक्षा पद्धति में पढ़ा हुआ विद्यार्थी भारतीय संस्कृति को गौण और पाश्चात्य संस्कृति को महान समझता है । आधुनिक शिक्षा पद्धति विद्यार्थी को अपने मन पर अनुशासन करने की कला नहीं सिखाती; अपितु मन का गुलाम बना देती है । इसलिए मनमाना निर्णय करके अपने को सुखी करने के चक्कर में व्यक्ति उल्टा दुःखी ही होता है । आधुनिक शिक्षा पद्धति में पढ़े हुए विद्यार्थी के जीवन में संयम का कोई स्थान नहीं होता जो उसे चरित्रहीन एवं विलासी बना देता है । इसलिए ऐसे लोग कई ला-इलाज एडस् जैसी बिमारियों एवं अन्य मानसिक रोगों के शिकार हो जाते हैं ।
 
‘आज का विद्यार्थी पड़ोस की बहन को बहन नहीं कह सकता, विद्यार्थिनी पड़ोस के भाई को अपने भाई के नजरों से नहीं देख सकती’ ऐसा बुरा हाल आधुनिक शिक्षा पद्धति ने बना दिया है तो उत्तम समाज का निर्माण कैसे संभव है ? आधुनिक शिक्षा पद्धति में पढ़े हुए विद्यार्थी के मन में उसे पढ़ानेवाले आचार्यों के प्रति कोई सद्भाव नहीं होता क्योंकि वह शिक्षा उन्होंने अपने ही शिक्षकों की निंदा करते-करते पाई होती है । वे अपने आपको तीसमारखा समझते हैं, अपने सामने किसी को कुछ नहीं गिनते । इसलिए उनका हाल – “Jack of all, Master of None” जैसा हो जाता है ।
संक्षेप में कहा जाए तो आधुनिक शिक्षा पद्धति में पढ़ा हुआ विद्यार्थी एक आदर्श मानव नहीं; अपितु एक जीवित, पढ़ा-लिखा पशु अवश्य बन जाता है । और तो और जो वह अपने पूर्वजों को बंदर समझता है और अपने को सुधरा हुआ मानव मानता है, तो आखिर ऐसी आधुनिक शिक्षा पद्धति से अपेक्षा ही क्या की जा सकती है ?…
 
जनता की मांग है कि सरकार फिर से वैदिक गुरुकुल खोले और उसमे वैदिक शिक्षा पढ़ाई जानी चाहिए तभी व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की उन्नति हो पायेगी।
 
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